Friday, March 4, 2016

नेचुरोपैथी ( NATUROPATHY )

WHAT IS NATUROPATHY ?
नेचुरोपैथी क्या है ? 

                      '' नेचुरोपैथी '' को हिन्दी मे '' प्राकृतिक चिकित्सा ''  भी कहते है, और यह चिकित्सा उतनी ही पुरानी है,जितनी प्राकृति है । यह चिकित्सा प्राणाली आज भी चिकित्सा इतिहास मे सबसे पुरानी है ,और यह भी कह सकते है  सभी चिकित्साओ की जननी  ( माता ) के सामान है । इसका उदहारण भारत के प्राचीन ग्रन्थों और वेदों मे मिलता है यह पौराणिक काल से पहले वैदिक काल में भी यह पद्धति प्रचलित थी । जो कि प्राचीन समय से अब-तक अनेक रोगों के उपचारों के लिये बहुत ही प्रबल उपचारक है ।
        
           प्राकृतिक चिकित्सा इतनी पुरानी है जितनी की प्रकृति ,परन्तु फिर भी उस युग के बीच के समय मे ये ग़ायब सी हो गई थी फिर वर्तमान युग मे लुई कुने, प्रेसनिज, फादर नीप, स्क्रोथ, एडोल्फ जस्ट आदि ने उसका पुर्नोत्थान किया और उस समय से अब-तक संसार मे बड़ी तेज़ी से फैलती जा रही है । प्राकृतिक चिकत्सा तो बाहर के लक्षणों को दूर न करके रोग के कारणों को दूर करती है यह तो रोगो के कारण शरीर में अन्दर विजातीय द्रव्य (गन्दगी विकार ) को मानती है । 

सर्वश्रेष्ठ पद्धति कौन सी है ?
 

जिस चिकित्सा में तीनों गुण-शोधक, शामक, पूरक मौजूद हों,वही चिकित्सा पद्धति सर्वश्रेष्ठ चिकित्सा समझी जानी चाहिए ये तीनों गुण केवल प्राकृतिक चिकित्सा में ही पाए जाते  है ।

1. शोधक गुण के अनुसार प्राकृतिक चिकित्सा में रोग के मूल कारण से शरीर के अन्दर स्थित विजातीय द्रव्य ( विकार ) को शरीर से बाहर निकल कर रोगी के शरीर को पुन: निर्मल बनाया जाता है ।
2. शामक गुण के अनुसार सीधे-सादे सरल  प्रयोगों से रोगी को आराम दिया जाता है ।
3. पूरक गुण के अनुसार रोगी के शरीर में आवशयक तत्व पहुंचाकर उसे पूरा स्वस्थ एवं प्रबल बनाया जाता है ।   
          

इसके विपरीत औषधि चिकित्सा ( जेसेकि-एलोपैथी, आयुर्वेदिक, यूनानी , होमियोपैथी ) वाले औषधि-विष देकर केवल रोग के लक्षणों पर ही कुठाराघात ( नुकसान ) करते रहते है । इससे रोगी के शरीर के अन्दर ही दबे रहने से रोग कोई और नया रूप धारण कर लेता है । इन औषधि-चिकित्सा में शोधक-गुण ( रोग से लड़ने कि श्रमता ) तो है ही नहीं,परन्तु शामक-गुण ( रोग से ना लड़ने कि श्रमता ) भी अस्थाई समय तक रहता है । शरीर के अन्दर विकार रहने पर बार-बार नए रोग उत्पन्न होते रहते है और हर बार औषधी- विष को शरीर मे डालने से जीवनी शक्ति का नुकसान होता रहता है इन औषधि चिकित्साओ मे पूरक तत्व का भी अभाव रहता है । इनको तो विष-चिकित्सा कहना चाहिए ।


कम खर्च वाला
  

प्राकृतिक चिकित्सा अन्य औषधि चिकित्सा की अपेक्षा कम खर्चीली है । इसके लिए बड़े-बड़े अस्पतालों,बहुत पढे-लिखे डाक्टरों, नर्सों, दवाइयों और यन्त्रों के लिए बड़े-बड़े प्रयोगशाला कि जरूरत नही इसमें थोड़ा-सा ज्ञान होने पर व्यक्ति स्वयं उपचार कर सकता है । यह तो जन-साधारण की चिकित्सा है । इसलिए गाँधीजी इसे सारे भारत में चालू करना चाहते थे । 



                  अन्य औषधि चिकित्सा में कई बार गलती से कोई दूसरी विषैली दवाई दी जाती है जिससे बहुत ही भायनक परिणाम निकलते है परन्तु प्राकृतिक चिकित्सा मे शारीरिक व मानसिक हानि का कोई स्थान नहीं इससे लाभ ही लाभ होता है। क्योंकि इसके प्रयोग सीधे-सादे है और उनमे कोई पेचीदगी नहीं ।     
 

No comments:

Post a Comment