उपवास चिकित्सा

प्राकृतिक चिकित्सा में उपवास का महत्व यह है की रोगी को उसके रोग चिकित्सा पूर्ण विश्राम की सलाह दी जाती है पूर्ण विश्राम में पाचन प्रणाली  का विश्राम, मानसिक विश्राम, शारीरिक विश्राम तथा आध्यत्मिक विश्राम आते है इनमे से पाचन प्रणाली के विश्राम को उपवास कहते है ।

           डॉ० लुईकुने के अनुसार सब रोगों का एक सामान्य करण मानव शरीर में विजातीय द्रव्य का एकत्रित हो जाना है इस ज़हर का हानिकारक तत्व शरीर के किसी भाग में जमा होकर वहां सूजन दर्द फोड़ा खुजली गठिया, बवासीर, खांसी, श्वास, हृदय रोग आदि अनेक अनेक रोगों का कारण बनाता है ।
         एक प्राचीन लेखक प्लूलार्क ने लिखा है कि दवा खाने से कहीं अच्छा है 1 दिन का उपवास रख लिया जाए ईसा मसीह ने भी 40 दिन का उपवास किया था डॉ० श्यु के अनुसार उपवास चिकित्सा के सिद्धांत को सभी शारीर शास्त्रवेता सत्य बतलाते हैं और उस की उपयोगिता से इनकार नहीं है प्रकृति ने हमारे शरीर को ऐसी शक्ति प्रदान की है कि वह अपने अनावश्यक बेकार और विजय तरंगों को स्वयं ही जल्दी से जल्दी ठीक कर देती है जब शरीर को भोजन के पचाने के कार्य से अवकाश मिल जाता है तब यह सफाई का कार्य और भी तेजी से तथा नियमबद्धता से होने लगता है इससे हम थोड़े ही दिनों में बहुत समय से जमा होने वाले दोष से छुटकारा पा जाते हैं
        इसी प्रकार उपवास के समय शरीर की जीवनी शक्ति रोगों को बाहर निकालने के कार्य को बहुत ठीक तरह से करने लग जाती है और फलस्वरुप हमारे स्वास्थ्य तथा शक्ति की अच्छी तरह वृद्धि होती है प्रमाणों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि जब कभी कोई महामारी फैलती है तो गरीब और भूखे रहने वाले बहुसंख्यक व्यक्ति बच जाते हैं और खूब खाते पीते लोग ही उसका शिकार होते हैं

             उपवास शारीरिक शुद्धि के लिए सप्ताह में 1 दिन का उपवास उत्तम रहता है उपवास के दौरान शरीर की शक्ति आंतरिक शुद्धि में लग जाती है और यंत्रों को आराम मिल जाता है उपवास में केवल नींबू पानी का ही प्रयोग किया जाता है अधिक से अधिक शहद या सूप जूस आदि तरल भी ले सकते हैं आधा या पूरा उपवास फल या दूध पर रहकर भी किया जा सकता है

           उपवास के दौरान शरीर की पाचन-प्रणाली भोजन पचाने के कार्य से मुक्त हो जाती है परंतु अतिरिक्त कार्य पाचन तंत्र में जमा अतिरिक्त मल को बाहर करने में जुट जाती है जिससे हमारे शरीर की आंतरिक शुद्धि होती है और जीवन शक्ति बढ़ती है जो रोगों से लड़ने की शक्ति देती है

         छोटा उपवास 2 से 3 दिन का होता है इस में विशेषज्ञ की जरूरत नहीं होती बड़े उपवास में विशेषज्ञ की जरुरत भी पड़ती है तथा चिकित्सालय में भी रहना पड़ता है यह हम छोटे उपवास की विधि एवं उपद्रव के बारे में लिख रहे हैं ।

विधि : किसी भी प्रकार का भोजन ना लेकर के दो ढाई लीटर जल अथवा 2 - 3 नींबू डालकर जल दिनभर पीते हैं यदि इससे काम नहीं चले तो चौथाई मीटर जल में एक संतरा मीठा नींबू दो चम्मच आवले का रस शहद या मौसमी का रस डालकर लेते हैं । ध्यान रहे उपवास के दौरान मल निष्काशन मार्ग पेशाब पखाना पसीना एक सांस ठीक-ठाक काम करते रहे क्योंकि उपवास काल में शरीर में छुट्टी गंदगी जब पुनरक्त मे मिल जाती है तो उससे हानिकारक उपद्रव पैदा हो सकते हैं इसीलिए उपवास के दौरान साधारण एनिमा तो अवश्य लेना चाहिए ।

उपद्रव : उपवास के दौरान उपद्रव रुपी उपहार पैदा हो सकते हैं अत: उसमें घबराहट प्रदर्शित न कर नींबू पानी लेते हैं चक्कर, सिरदर्द, मूर्छा, अनिंद्रा, थकावट और हृदय की धड़कन में नींबू पानी या नींबू पानी शहद मिश्रण लेते ही उपरोक्त उपद्रव शांत हो जाते हैं जीभ पर गंदगी लेप, साँस से दुर्गंध, मुंह का स्वाद बुरा भी उपवास के दौरान उपद्रव है ।

उपवास का तोड़ना : 
    प्रथम सुबह के दिन 8:00 बजे 125 मि.ली. फलों का रस, दुपहर 12:00 बजे 250 ग्राम उबली सब्जी और शाम 6:00 बजे भी उबली सब्जी ।
    दूसरे दिन 8:00 बजे दो संतरे का रस 100 मि.ली. टमाटर का रस या 200 ग्राम अंगूर या 15 या 25 ग्राम रात को भिगोई हुई किशमिश । दुपहर 12:00 बजे 100 ग्राम सलाद 60 ग्राम आटे की चपाती 250 ग्राम उबली सब्जी एवं कोई फल । शाम 6:00 बजे 200 ग्राम उबली हरी सब्जी 60 ग्राम सुखा मेवा किशमीश, अंजीर, छोहारा और मुनक्का आदि।

    इसके बाद रोग चिकित्सा के अनुसार भोजन क्रम चलाते हैं पथरी में पालक एवं टमाटर वर्जित है ।

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