'' जल से ही जीवन है और जीवन ही जल से है ''
जल हमारे शरीर की मौलिक आवश्कता है। हमारे शरीर में 2/3 भाग जल का है इससे हमारी बाहरी भीतरी दोनों प्रकार कि सफाई होती है । जल द्वारा चिकित्सा देते समय जल के विभिन्न ताप को जानना आवश्यक है । जिससे जल के प्रकार का स्थिति के अनुसार चुनाव किया जा सके
जल के विभिन्न ताप
1.अति शीतल ( बहुत ठंण्डा )32 से 55 डिग्री फॅारेनहाइट
2. शीतल ( ठंण्डा ) 56 से 65 डिग्री फॅारेनहाइट
3. गुनगुना 61 से 62 डिग्री फॅारेनहाइट
4. सामान्य उष्ण ( थोड़ा गरम ) 63 से 66 डिग्री फॅारेनहाइट
5. उष्ण ( गरम ) 66 से 104 डिग्री फॅारेनहाइट
6. अति-उष्ण ( अधिक गरम ) 104 से अधिक डिग्री फॅारेनहाइट
भिन्न-भिन्न प्रकार की चिकित्सा में अलग-अलग ताप का पानी लिया जाता है ।
जल-चिकित्सा की विधियाँ निम्न है :-
1. तरेरा-स्नान :- इसके लिये बना-बनया फव्वारा लगाया जा सकता है अथवा किसी बर्तन में जल भरकर 1-2 मीटर उंचाई पर रखकर रबड़ की नली में फव्वारा लगाकर स्नान लिया जा सकता है
2. घर्षण स्नान :- इसमे ठंण्डा अथवा समशीतल जल रोगी की शक्ति अनुसार प्रयोग किया जाता है । क्रमश: सिर पेट पर जल डालकर 2-3 मिनट तक मलें और यकृत एवं प्लीहा पर भी एसा करें अन्त में हथेली से सुखाकर स्फूर्ति प्रदान करें । इससे लाभ यह है की स्वपन दोष व शीघ्र पतन की रामबाण दवा है,मानसिक तनाव को कम करता है, नपुंसकता दूर करता है,जननांगो को बल देकर संतानोंत्पति के लायक बनता है,सफेद अथवा लाल प्रदर को दूर करता है ।
3. ठंण्डा-स्नान :- इसमे ठंण्डे जल से स्नान करते है ।
4. गर्म ठंडा रीढ़ स्नान :- इस स्नान के लिये पहले तौलिये को गर्म पानी भिगोकर रोगी की कमर पर फैला देते है ऐसा 3 मिनटों तक करते है फिर गर्म तौलिये कि हटाकर ठंडे पानी से भीगा तौलिये रखते है इस की अवधि1 मिनट की होती है । गर्म पट्टी रखते समय यह ध्यान रखते है कि उसको ऊपर एक कम्बल का टुकड़ा डाल दे जिससे भाप ऊपर को न उड़कर शरीर मे ही अवशोषित हो जाये । ऐसा करने के लिए रोगी को चारपाई या तख्त पर कपड़ा बिछा हो लिटाते है । इससे लाभ यह है की पीठ को लचकदार बनता है, रक्त संचलान को दुरुस्त करता है, नड्डी-दुर्बलता को ठीक करता है, बुढ़ापे को आने से रोकता है, आलस्य दूर करता है स्फूर्ति पैदा करता है ।
5. भाप स्नान :- इस स्नान के लिये एक स्टीम बाथ-बाॅक्स होता है जो चारों और से बंद कर दिया जाता है केवल सिर बाहर रहने दिया जाता है और सिर के ऊपर गीला तौलिये रख दिया जाता है तथा गर्दन के चारों ओर दूसरा तौलिये लपेट दिया जाता है जिससे कि वाष्प बाॅक्स से बहार न निकले और साथ मे रोगी को एक गिलास ठंड जल पिलाते है फिर इस प्रकार रोगी 20-25 मिनट बाॅक्स मे बेठा रहता है फिर बाॅक्स से निकलने के बाद तुरन्त फोव्वारा स्नान देना चाहिए। इससे लाभ यह है की जिन रोगियों को कमजोरी के कारण पसीना कम निकलता है यह स्नान लाभ -दायक है, मोटे रोगियों को मोटापा कम करने मे सहायक है क्योकि पसीने के साथ चर्बी को घोलकर निकलता है ,जई के डंठल को कुकर में डालकर भाप-स्नान देने से गुर्दे या पथरी के रोगों में लाभ पहुँचता है ।
जल-चिकित्सा की विधियाँ निम्न है :-
1. तरेरा-स्नान :- इसके लिये बना-बनया फव्वारा लगाया जा सकता है अथवा किसी बर्तन में जल भरकर 1-2 मीटर उंचाई पर रखकर रबड़ की नली में फव्वारा लगाकर स्नान लिया जा सकता है
2. घर्षण स्नान :- इसमे ठंण्डा अथवा समशीतल जल रोगी की शक्ति अनुसार प्रयोग किया जाता है । क्रमश: सिर पेट पर जल डालकर 2-3 मिनट तक मलें और यकृत एवं प्लीहा पर भी एसा करें अन्त में हथेली से सुखाकर स्फूर्ति प्रदान करें । इससे लाभ यह है की स्वपन दोष व शीघ्र पतन की रामबाण दवा है,मानसिक तनाव को कम करता है, नपुंसकता दूर करता है,जननांगो को बल देकर संतानोंत्पति के लायक बनता है,सफेद अथवा लाल प्रदर को दूर करता है ।
3. ठंण्डा-स्नान :- इसमे ठंण्डे जल से स्नान करते है ।
4. गर्म ठंडा रीढ़ स्नान :- इस स्नान के लिये पहले तौलिये को गर्म पानी भिगोकर रोगी की कमर पर फैला देते है ऐसा 3 मिनटों तक करते है फिर गर्म तौलिये कि हटाकर ठंडे पानी से भीगा तौलिये रखते है इस की अवधि1 मिनट की होती है । गर्म पट्टी रखते समय यह ध्यान रखते है कि उसको ऊपर एक कम्बल का टुकड़ा डाल दे जिससे भाप ऊपर को न उड़कर शरीर मे ही अवशोषित हो जाये । ऐसा करने के लिए रोगी को चारपाई या तख्त पर कपड़ा बिछा हो लिटाते है । इससे लाभ यह है की पीठ को लचकदार बनता है, रक्त संचलान को दुरुस्त करता है, नड्डी-दुर्बलता को ठीक करता है, बुढ़ापे को आने से रोकता है, आलस्य दूर करता है स्फूर्ति पैदा करता है ।
5. भाप स्नान :- इस स्नान के लिये एक स्टीम बाथ-बाॅक्स होता है जो चारों और से बंद कर दिया जाता है केवल सिर बाहर रहने दिया जाता है और सिर के ऊपर गीला तौलिये रख दिया जाता है तथा गर्दन के चारों ओर दूसरा तौलिये लपेट दिया जाता है जिससे कि वाष्प बाॅक्स से बहार न निकले और साथ मे रोगी को एक गिलास ठंड जल पिलाते है फिर इस प्रकार रोगी 20-25 मिनट बाॅक्स मे बेठा रहता है फिर बाॅक्स से निकलने के बाद तुरन्त फोव्वारा स्नान देना चाहिए। इससे लाभ यह है की जिन रोगियों को कमजोरी के कारण पसीना कम निकलता है यह स्नान लाभ -दायक है, मोटे रोगियों को मोटापा कम करने मे सहायक है क्योकि पसीने के साथ चर्बी को घोलकर निकलता है ,जई के डंठल को कुकर में डालकर भाप-स्नान देने से गुर्दे या पथरी के रोगों में लाभ पहुँचता है ।
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